हम बज़ाहिर तो अपने घर में रहे। उम्र गुज़री हे कैद खाने में ।। तहसीन कमर असारवी
Muzaffarnagar1 मशहूर शायर अब्दुल हक़ सहर के आवास केवलपुरी में हिंदी उर्दू की अदबी संस्था समर्पण की एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसकी अध्यक्ष्ता जनाब ईश्वर दयाल गुप्ता ने व् संचालन डॉक्टर आसमोहम्मद अमीन ने किया । मुख्या अतिथि श्री राजबल त्यागी रहे। काव्य गोष्ठी में शायरों व कवियों ने अपने कलाम पेश किये। ईश्वर दयाल गुप्ता-- आ, चल जरा, कश्मीर तक चले। नाचेंगे,झूमेंगे, चूमेंगे तिरंगा ।।। अब्दुल हक़ सहर--- अमीर ए शहर की दौलत को मारिये ठोकर। मगर गरीब के आंसू संभाल कर रखना ।।। सुशील शर्मा ---- चल तो पड़े हे राह में है तीरगी बहुत। अब देखना हे हमको मिलेगी सहर कहा।।। आसमोहम्मद अमीन---- हर शाम मोहब्बत के दामन में गुज़र जाए। हो जाए अगर ऐसा हर शहर संवार जाए।।। तहसीन कमर असारवी------ हम बज़ाहिर तो अपने घर में रहे। उम्र गुज़री ह कैद खाने में।। डा0वीना गर्ग--- रात भर चाँद चुप चाप चलता रहा।। मोम सा वक़्त यूँ ही पिघलता रहा।। फर्श पर बिछ रही मखमली चांदनी।।। दर्द आँखो के आंसू में ढलता रहा।। अल्ताफ मशल --- दलाली करके में अब तक काम लेता बहुत दौलत ।। मगर इसकी इज़ाज़त ही नहीं देती अना मुझको।।. सुमन सिंह चंदेल------------- ज़रा सा हौसला तो दो, ये चढ़ जाती हे सीढिया।। बेटीयो के पढ़ाने से पढ़ जाती हे पीढियां।।। शशि सक्सेना------- आज देश में सुलग रही हे चिंगारी।। सोच में हर नर नारी ।। प्रीतम सिंह प्रीतम ---------- घुसपैठी अलगाइयो की यहाँ जियो जियो शक्ति बढ़ती गई।। भारत के टुकड़े करने की नीयत खोटी बढ़ती गई।। साँच की आंच लगी तब मन को,तीन सो सत्तर डिगर गए। पेंतीस ए का हाथ पकड़ के वो पटरी से उतार गए।। अनिल धीमान पोपट------ उसने अपने गुस्से पर काबिज होना सीख लिया।। जब हमने घर के बर्तन कपडे धोना सीख लिया।।। राशिद रफीक---- यूं तो हर शख्स किसी शख्स से जुदा नहीं । जिसके दिल में रहम नहीं उसके दिल में खुदा नहीं ।।।