ईमान की बुनियाद है अख़लाक़ पे क़ायम, ये बात समझता है परस्तारे मोहम्मद
मुज़फ़्फ़रनगर।केवलपुरी के मदरसा तालीमुल क़ुरआन में एक शानदार मुशायरा हुआ।जिसमें नगर व बाहर के शायरों ने शिरकत की।
मुशायरे की अध्यक्षता नोयडा से पधारे वरिष्ट शायर आलोक श्रीवास्तव 'शाद' ने फ़रमाई।मुशायरे का संचालन उस्ताद शायर अब्दुल हक़ सहर ने किया।मुशायरा क़मर अदबी सोसायटी की तरफ़ से आयोजित किया गया था
आरम्भ,अहमद मुज़फ़्फ़रनगरी के नाते पाक के पाठ से हुआ उन्होंने पढ़ा-
ईमान की बुनियाद है अख़लाक़ पे क़ायम,
ये बात समझता है परस्तारे मोहम्मद।
नवेद अंजुम ने पढ़ा-
मुझे मिल जाएं शायद मेरे बिछड़े हुए साथी,
इसी उम्मीद पे दुनिया का मेला देखता हूं मैं।
देवबंद से आए नाहिद समर काविश जुगाड़ ने कहा-
आम की पेटी चुराकर मैं जब भागा जुगाड़,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।
लक्की फ़ारूक़ी पढ़ते हैं-
मेरे कमरे की खामोशी का गिला वाजिब है,
आप तस्वीर में तस्वीर बने बैठे हैं।
नदीम अख़्तर नदीम ने सलाह दी-
जेब भले ही ख़ाली हो,
हुलिया अच्छा रक्खा कर।
शाहज़ेब शरफ़ ने पुख़्ता कलाम पढ़ा-
बच्चों से भी मिलती है तरकीब बुजुर्गों को,
सदियों को गुज़र जाना लम्हात सिखाते हैं।
सुनील 'उत्सव' ने कहा-
भाई चारे की हक़ीक़त क़हक़हों को याद रख,
दूसरे मज़हब के अपने दोस्तों को याद रख।
इस मुशायरे में 'इंतख़ाब -3' का इजरा यानी 'इंतख़ाब -3'नामक पुस्तक का विमोचन भी हुआ।'इंतख़ाब -3'किताब में दुनिया भर में चल रहे एक वाट्सएप ग्रुप पर होने वाले तरही मुशायरों के चुनिंदा अशआर हैं।इस किताब के बारे में डॉक्टर सदाक़त देवबंदी ने विस्तार से बताया।
संचालन कर रहे अब्दुल हक़ सहर का कलाम-
अगर ख़ौफ़े ख़ुदा इन्सान में है,
यक़ीनन पुख़्तगी ईमान में है।
शऊरो फ़िक्र की है बस ज़रूरत,
निज़ामे ज़िन्दगी क़ुरआन में है।
ज़की अंजुम का शेर-
मारा गया है मुझको मेरी ही दलील से,
मेरा वकील मिल गया उनके वकील से।
डॉक्टर सदाक़त देवबंदी का कलाम-
हूं तो नादां मगर इतना तो समझता हूं मैं,
किसलिए आपके लहजे में लचक सी आई।
अब्दुल्ला राही देवबंदी कहते हैं-
ज़िन्दगी के हक़ूक़ की ख़ातिर,
कितने ख़ानों में बंट रहा हूं मैं।
अन्त में अध्यक्षता कर रहे आलोक श्रीवास्तव शाद को सुना गया उनका शेर-
मन्ज़िले मक़सूद पर आख़िर पहुंच जाते हैं सब।
फ़र्क़ ये है सबको सीधा रास्ता मिलता नहीं।
चांदनी अब्बासी ने भी किताब और उर्दू पर अपने विचार रक्खे।इनके अलावा तहसीन अली असारवी,सलीम अहमद सलीम, अल्ताफ़ मशअल,अहमद मुज़फ़्फ़रनगरी,अरशद ज़िया,इल्तिफ़ात बक़ा ने भी कलाम पेश किया।अन्त में क़मर अदबी सोसायटी की ओर से अब्दुल हक़ सहर ने सभी का आभार प्रकट किया।