प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया
मेरठ
{Sanjay verma }
कुपोषण, मातृ व शिशु मृत्यु दर पर लगाम लगाने के लिए जिला अस्पताल, सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी-पीएचसी) में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया गया। इसमें गर्भवती महिलाओं एवं धात्री महिलाओं को जानकारी दी गई कि जन्म से 28 दिन तक नवजात को विशेष सुरक्षा मिले तो शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों को बहुत कम किया जा सकता है। वहीं कुपोषण व एनीमिया से भी जागरूकता से ही लड़ा जा सकता है। इस दौरान गर्भवती महिलाओं की जांच पड़ताल के साथ उन्हें नि:शुल्क दवा दी गयी।
जिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. मनीषा अग्रवाल ने बताया प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व दिवस हर माह 9 तारीख को मनाया जाता है। उन्होंने बताया शिशु मृत्यु जन्म के 28 दिन तक सर्वाधिक होती है। इन 28 दिनों में अगर जरा सी सतर्कता बरती जाए और बच्चे को केवल स्तनपान ही कराया जाए तो इस पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है। बाहरी दूध पिलाने व गंदे हाथों से बच्चे को छूने से संक्रमण व निमोनिया हो सकता है। शुरू के 28 दिन तक बच्चे की विशेष सुरक्षा जरूरी है। मातृ मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण अधिक रक्त स्राव है, जिससे लड़ने के लिए भी जागरूकता ही सबसे अहम है।
उन्होंने कहा, कुपोषण, एनीमिया, अल्प वजन आदि के पीछे अज्ञानता व लापरवाही सबसे बड़ा कारण होता है। लगभग हर दूसरी महिला एनीमिया की शिकार है। मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु के आधारभूत कारण कम उम्र में शादी एवं कम अंतराल पर बच्चों का पैदा होना और ज्यादा बच्चों का पैदा होना आदि हैं। यदि शादी भी सही उम्र पर हुई है तो उसके बाद बच्चों में कम अंतराल होने पर भी माँ और बच्चे दोनों को खतरा होता है। उन्होंने बताया सुरक्षित मातृत्व दिवस सीएचसी व पीएचसी में भी मनाया गया। इस अवसर पर वहां आने वाली गर्भवतियों की जांच पड़ताल की गयी। उन्होंने बताया, अभियान में 127 गर्भवती महिलाओं की नि:शुल्क जांच कर उन्हें नि:शुल्क दवा दी गयी। वहीं गर्भवती महिलाओं को लाने में 108 एंबुलेंस ने खास भूमिका निभायी।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. राजकुमार ने बताया प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान का मकसद समस्त गर्भवती महिलाओं की प्रसव से पूर्व हीमोग्लोबिन, शुगर, यूरिन जांच, ब्लड ग्रुप, एचआईवी, सिफलिस, वजन, ब्लड प्रेशर आदि की जांच कराना है। समस्त गर्भवती महिलाओं के गर्भ की द्वितीय व तृतीय मास की जांच कम से कम एक बार स्त्री रोग विशेषज्ञ की देखरेख में जरूरी है। उन्होंने बताया यह अभियान जिले में जिला अस्पताल के साथ-साथ सीएचसी व पीएचसी में एक साथ चलाया गया।