आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने बदली दुनिया की तस्वीर: डॉ. पाठक
मेरठ। आज के युग में जब हम टेक्नोलॉजी की बात करते हैं तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात ना हो यह संभव नहीं हैं। शोभित विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. निशांत पाठक ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। 1939 का समय था। जर्मनी अपने सैन्य ताकत और आधुनिक टेक्नोलॉजी के मदद से ब्रिटेन, फ्रांस, रूस इन सभी देशों को टक्कर दे रहा था और कई एक मोर्चों पर सफलता भी हासिल करता जा रहा था।
बताया कि जर्मन ने द्वितीय विश्व युद्ध को जीतने के लिए उस समय की अत्याधुनिक मशीन एनिग्मा का उपयोग किया। जिसमें बहुत सारे प्लग और राउटर लगे होते थे। इन प्लग और राउटर की मदद से जर्मनी अपने सैनिकों को गुप्त और खुफिया मैसेज भेजा करता था। जिसका तोड़ निकालना बहुत ज्यादा मुश्किल होता जा रहा था। इन मैसेज का रूपांतरण शब्दों और वाक्यों में सही रूप से नहीं हो पाने के कारण यह पता लगाना भी काफी मुश्किल हो रहा था कि अगली बार जर्मनी की सेना कहां युद्ध करेगी। इन तमाम चीजों से परेशान होकर ब्रिटेन ने इसकी तोड़ निकालने की सोची और इसका जिम्मा ब्रिटेन ने अपने महान गणितज्ञ एलेन टयूरिंग को दिया। एलेन टयूरिंग के लिए यह बहुत बड़ा मुश्किल का काम था, लेकिन कहते हैं जहां विश्वास है वही सफलता है। एलेन टयूरिंग ने एक टीम बनाया जिसमें एलेन ने गणितज्ञ, पजल सॉल्व करने वाले व्यक्तियों को शामिल किया और अपने मित्र दलों के सदस्यों के साथ मिलकर एक मशीन बनाई जिसका नाम रखा बॉम्ब रखा। 18 मार्च 1940 को यह मशीन बनाई गई जिसमें हजारों प्लग और लाखों राउटर्स लगे थे लेकिन यह मशीन जर्मन मैसेज को रिकॉर्ड करने में सफल नहीं हो पा रही थी। लेकिन एलेन टयूरिंग ने हार नहीं मानी और उन्होंने एक नए सिद्धांत का विकास किया, जिसका नाम दिया गया ट्यूरिंगरी। ट्यूरिंगरी के मदद से मैसेज को डिकोड करना संभव हो पाया। ट्यूरिंगरी जर्मन सेना के द्वारा भेजे गए संदेश को पढ़ती थी और उस संदेश के माध्यम से बाकी संदेश को डिकोड करती थी, जिससे ब्रिटिशर्स को जर्मन के युद्ध नीति का पता आसानी से लग जाता था।
इस तरह हुई जर्मन की हार
एलेन टयूरिंग का ट्यूरिंगरी सिद्धांत पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सिद्धांत था, जिसने मशीन को मनुष्य की तरह सोचने और विचार करने की क्षमता से अवगत कराया और इस मशीन ने द्वितीय विश्वयुद्ध का पूरा नक्शा बदलकर रख दिया। ब्रिटेन की जीत हुई और जर्मन की बुरी तरह से हार।
आखिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस होता क्या है
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जिसका की शॉर्ट फॉर्म है। आई एक टेक्नोलॉजी है, जिसमें हम मशीन को मनुष्यों की तरह व्यवहार करना सिखाते हैं। इसमें हम कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग का उपयोग करते हैं। आने वाले समय में हमारा अधिकतर काम इसी टेक्नोलॉजी के मदद से संभव हो सकेगा। विश्व के समस्त विकसित देश इसके ऊपर बहुत ही जोर शोर से अनुसंधान कर रहे हैं। जिसका मकसद कम समय में अधिक कार्य को सुगमता पूर्वक करना और एक सफल आउटपुट जनरेट करना है। आज के वर्तमान परिवेश में बिना चालक अर्थात बिना ड्राइवर के गाड़ी का चलना इसका सफलतम उदाहरण है। सिर्फ गाड़ी तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सफर नहीं रुका है। मेडिकल, कंप्यूटर, औद्योगिक कामकाज, हर जगह पर इस टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया जा रहा है और आने वाले समय में इसमें सुधार होगा और जन-जन तक सुगमता के साथ इसका उपयोग भी होगा। मौसम की जानकारी और कंप्यूटर के द्वारा मन की बात को जान लेना और आपके रुचि के हिसाब से आपके पसंदीदा विषय को आपके सामने प्रस्तुत करना यह सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण ही संभव हो पा रहा है। हमारे देश में भी कई विश्वविद्यालय, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उपयोगिता को देखते हुए इसे अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर रहे है।
इन्होंने कहा
शोभित डीम्ड विश्वविद्यालय के चैयरमेन डॉ. शोभित कुमार एवं कुलाधिपति कुंवर शेखर विजेंद्र ने हमेशा छात्रों-छात्राओं के उज्जवल भविष्य हेतु विश्वविद्यालय में नए तथा एडवांस्ड कोर्सेज को शुरु करने को प्राथमिकता दी है। कुलपति प्रोफेसर अजय राणा ने बताया कि विश्वविद्यालय ने भी मेजर डिग्री के साथ-साथ विशेष माइनर डिग्री में कई प्रोग्राम लांच किये हैं। स्कूल ऑफ़ कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के डायरेक्टर डॉ. नीरज सिंघल ने बताया कि बीटेक कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने के साथ-साथ अब छात्र-छात्राएं, क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, बिग डाटा, सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, मशीन लर्निंग आदि में स्पेशलाइजेशन कर सकेंगे।