मौजूदा हालात में मुबाहसा की नहीं, मुहासबा की जरूरत है: मुस्लिम मोर्चा

 


 इरशाद राणा 

नई दिल्ली।आल इंडिया यूनाइटेड  मुस्लिम मोर्चा द्वारा आयोजित, बाबरी मस्जिद की शहादत के तीन दशकों के बाद भी, देश ने काला दिवस, शोक दिवस के प्रचलित रीति-रिवाजों से अलग  मुहासबा दिवस (हिसाब-किताब का दिन ) का आयोजन किया।इस अवसर पर मोर्चा के सभी पदाधिकारियों और समर्थकों को संबोधित करते हुए मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हाफिज गुलाम सरवर ने कहा कि देश में शरारत, उकसावे और सांप्रदायिकता के एजेंडे को आगे बढ़ाना मुट्ठी भर लोगों का काम है। अधिकांश आबादी शांति और प्रेम में विश्वास करती है। हमें शांतिपूर्ण लोगों को साथ लेकर घृणित समूह को हराने की जरूरत है, हमें अपने जीवन में इस्लाम के इस सिद्धांत को अपने सामने रखते हुए काम करने की जरूरत है। जिसे मिसाके  मदीना के नाम से जाना जाता है।

हाफिज गुलाम सरवर ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश की मनोदशा को समझे बिना कोई भी नीति बनाना अल्पसंख्यकों के लिए हानिकारक साबित होगा। इसलिए, यूनाइटेड  मुस्लिम मोर्चा देश के अल्पसंख्यकों से अपील करता है कि वे नकारात्मक सोच और नकारात्मक बातें छोड़ दें और सकारात्मक तरीके से इस्लाम के वास्तविक सिद्धांत के साथ देश के भाइयों और बहनों के साथ शांति और विश्वास की बहाली के लिए काम करें।

महासचिव शब्बीर अहमद मंसूरी ने भी  देश में संभावनाओं पर विस्तार से बात की, अब्दुल जब्बार पहलवान ने  अध्यक्षता की। जबकि अन्य अधिकारियों में मुहम्मद अकरम सागर, रईस अहमद सैफी, मुहम्मद इरशाद, यूसुफ मंसूरी, मुहम्मद आजम, तौकीर अंसारी, अशरफ अंसारी आदि शामिल थे। उन्होंने भी अपने विचार व्यक्त किए।समारोह में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।

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